रक्षा अधिग्रहण परिषद (Defense Acquisition Council - DAC)
रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) भारत में रक्षा अधिग्रहण के लिए सर्वोच्च संस्था है, जिसकी स्थापना
भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य देश की रक्षा
तैयारियों को मजबूत करना और भारतीय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के
लिए समय पर और कुशल अधिग्रहण सुनिश्चित करना है।
स्थापना और संरचना
रक्षा अधिग्रहण परिषद की स्थापना 2001 में की गई थी।
इसका नेतृत्व रक्षा मंत्री द्वारा किया जाता है और इसमें वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों, सेवा प्रमुखों, और अन्य महत्वपूर्ण
सदस्य शामिल होते हैं। परिषद में मुख्य रूप से रक्षा सचिव, वित्तीय सलाहकार
(रक्षा सेवाएं), सेना, नौसेना और वायु
सेना के प्रमुख शामिल होते हैं।
उद्देश्य और कार्य
रक्षा अधिग्रहण परिषद के मुख्य उद्देश्य और कार्य
निम्नलिखित हैं:
1. रक्षा
उपकरणों का अधिग्रहण: सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रक्षा
उपकरणों और प्रणालियों का अधिग्रहण करना।
2. नीति
निर्धारण: रक्षा अधिग्रहण से संबंधित नीतियों और प्रक्रियाओं का निर्धारण करना।
3. आत्मनिर्भरता:
'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के तहत
स्वदेशी रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहन देना।
4. वित्तीय
स्वीकृति: रक्षा अधिग्रहण के लिए वित्तीय स्वीकृति प्रदान करना और बजटीय नियंत्रण
सुनिश्चित करना।
5. अधिग्रहण
प्रक्रियाओं की समीक्षा: अधिग्रहण प्रक्रियाओं की नियमित समीक्षा और निगरानी करना
ताकि वे पारदर्शी और कुशल हों।
महत्व
रक्षा अधिग्रहण परिषद का महत्व कई मायनों में है:
1. राष्ट्रीय
सुरक्षा: DAC के निर्णय
भारतीय सशस्त्र बलों की तैयारियों और क्षमताओं को सीधे प्रभावित करते हैं, जिससे राष्ट्रीय
सुरक्षा को मजबूती मिलती है।
2. आर्थिक
प्रभाव: रक्षा अधिग्रहण में बड़े पैमाने पर धनराशि निवेशित होती है, इसलिए DAC के निर्णयों का
भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
3. तकनीकी
उन्नति: नवीनतम तकनीकों और प्रणालियों के अधिग्रहण से भारतीय रक्षा क्षमताओं में
सुधार होता है।
4. स्वदेशीकरण:
स्वदेशी रक्षा उद्योग को प्रोत्साहन देने से भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ती है और
विदेशी निर्भरता कम होती है।
चुनौतियाँ
रक्षा अधिग्रहण परिषद को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता
है:
1. लंबी और
जटिल प्रक्रियाएँ: अधिग्रहण प्रक्रियाएँ अक्सर लंबी और जटिल होती हैं, जिससे समय पर
अधिग्रहण में देरी हो सकती है।
2. वित्तीय
सीमाएँ: रक्षा बजट की सीमाएँ और वित्तीय प्रतिबंध अधिग्रहण को प्रभावित कर सकते
हैं।
3. तकनीकी और
गुणवत्ता मानदंड: नवीनतम तकनीकों और उच्च गुणवत्ता मानदंडों को पूरा करना
चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
4. भ्रष्टाचार
और पारदर्शिता: अधिग्रहण प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बनाए रखना और भ्रष्टाचार को
रोकना एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
निष्कर्ष
रक्षा अधिग्रहण परिषद भारतीय सशस्त्र बलों की रक्षा
तैयारियों को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके निर्णय न केवल
राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करते हैं,
बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था और स्वदेशी रक्षा उद्योग को भी मजबूती प्रदान करते
हैं। हालांकि, इसे अपनी
प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए निरंतर प्रयास करना होगा ताकि
भारत की रक्षा आवश्यकताओं को समय पर और प्रभावी रूप से पूरा किया जा सके।
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