मध्यकालीन इतिहास
भारत पर मुस्लिम आक्रमण
Ø इस्लाम धर्म के प्रर्वतक पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में मक्का में हुआ था । मक्का सऊदी अरब में स्थित है। इसी कारण यह स्थान मुस्लिम अनुयायियों का पवित्र तीर्थ स्थल है। इनकी मृत्यु 632 ई. में हुई। मुहम्मद साहब प्रायः मक्का के समीप हीरा नामक पहाड़ी गुफा में ध्यान लगाते थे। यही 40 वर्ष की अवस्था में मुहम्मद ने स्वयं को अल्लाह का पैगम्बर कहा। धर्म और राजनीति दोनों के प्रधान पैगम्बर साहब ही थे। लोगों के विरोध से विवश होकर उन्हें 16 जुलाई 622 ई. को मक्का के यसरीब / मदीना जाना पड़ा। इसी घटना को ‘हिजरत' कहा गया। 622 ई. से हिजरी संवत् की शुरूआत मानी जाती है । पैगम्बर के उत्तराधिकारी खलीफा कहलाए।
Ø भारत और अरब के बीच व्यापारिक सम्बन्ध प्राचीन काल से ही रहा है। सातवीं सदी से पूर्व इनका व्यापार भारत के पश्चिमी समुद्री तटों से होता था। अरबों का सातवीं शताब्दी में अचानक एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में प्रकट होना और फिर भारत ही नहीं विश्व के अन्य महत्वपूर्ण देशों पर अधिकार कर लेना एक आश्चर्यजनक बात है ।
Ø अरबों के भारत आक्रमण के विषय में पर्याप्त सूचना 9वीं शताब्दी के बिलादूरी कृत 'किताब - अल- बलदान' में मिलता है ।
Ø 'चचनामा' किसी अज्ञात लेखक ने अरबी में लिखा, बाद में कूफी ने इसका फारसी अनुवाद किया । यह अरब आक्रमण को जानने का स्त्रोत है ।
Ø अरब पहले मुस्लिम आक्रमणकारी थे, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया। मकरान के मरूप्रदेश के समतली मार्ग से प्रवेश करने में सफल हुए। अरब सिंध से आगे नहीं बढ़ पाए ।
Ø 712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर सफल आक्रमण किया सबसे पहले उसने थट्टा के पास उसने स्थित देवल बन्दरगाह को अपने अधीन करना चाहा जिसके लिए रावर का युद्ध हुआ। सिंध में उस समय भारतीय शासक दाहिर का शासन था। इनकी अदूरदर्शिता के कारण भारत असफल हुआ।
Ø कासिम ने मकराना मार्ग से भारत पर आक्रमण किया।
Ø भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमण 711 ई. में उबैदुल्लाह के नेतृत्व में हुआ जो असफल रहा।
Ø भारत को 'हिन्दू' शब्द में संबोधन अरबों ने किया ।
Ø भारत सर्वप्रथम मुस्लिम आक्रमणकारी अरबों को ही माना जाता है ।
अरबों के आक्रमण का महत्व:
Ø अरबों ने चिकित्सा, दर्शन शास्त्र, नक्षत्र शास्त्र, विज्ञान, गणित और प्रबन्धन की शिक्षा भारत से ली।
Ø पंचतंत्र का अनुवाद अरबी भाषा में कलिलावादिम्ना नाम से हुआ जिनका उल्लेख अलबरूनी ने किया है ।
Ø अरबों ने सिंध में ऊँट पालन तथा खजूर की खेती का प्रचलन किया।
Ø अरबों ने 'दिरहम' नामक सिक्के का सिंध में प्रचलन करवाया ।
तुर्की आक्रमण:
Ø अरब आक्रमण के उपरांत भारत में तुर्की आक्रमण हुआ जिसने भारत के इतिहास में विविध क्षेत्रों में उल्लेखनीय परिवर्तनों को जन्म दिया।
Ø पैगम्बर के उपरांत इस्लाम का प्रधान खलीफा कहलाया। खलीफाओं की प्रारम्भिक राजधानी मदीना थी। उमय्या वंश के शासक या जिद के समय राजधानी दमिश्क हो गई। बाद में अब्बासी खलीफाओं ने राजधानी दमिश्क से बगदाद बनाई।
Ø यामिनी वंश का संस्थापक अलप्तगीन था । उसने गजनी को राजधानी बनाई ।
Ø अलप्तगीन का गुलाम एवं दामाद सुबुक्तगीन प्रथम तुर्की शासक था जिसने भारत पर आक्रमण किया । उसने हिन्दूशाही शासक जयपाल को पराजित किया ।
Ø सुबुक्तगीन की विजयों से प्रभावित होकर महमूद गजनवी ने 1001 ई. से 1027 ई. तक भारत पर 17 बार आक्रमण किया।
Ø इतिहाकार जाफर के अनुसार महमूद का उद्देश्य भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार नहीं बल्कि धन लूटना था।
Ø गजनवी का दरबारी इतिहासकार उतबी ने उसके आक्रमणों को जेहाद माना।
Ø महमूद का प्रथम भारतीय आक्रमण पश्चिमोत्तर भारत के शाही राजा जयपाल पर 1001 ई. में हुआ। जयपाल पराजित हुआ तथा उसने आत्मदाह कर लिया ।
महमूद के आक्रमण:
1. हिंदूशाही वंश | 1001, 1018, तथा 1021 ई. |
2. मुल्तान के शासक (दाउद) | 1000 ई.., 1010 ई. |
3. भटिण्डा | 1005 ई. |
4. नारायणपुर नगर था । | 1009 ई. में यह सबसे प्रसिद्ध व्यापारिक |
5. थानेश्वर | 1014 ई. |
6. कन्नौज | 1018 ई. |
7. मथुरा | 1019 ई. |
8. कालिंजर | 1019, और 1023 ई. |
9. सोमनाथ | 1025 ई. - 1026 ई. |
Ø महमूद गजनवी का अंतिम आक्रमण 1027 ई. में जाटों के विरुद्ध हुआ ।
Ø गजनवी के दरबार में 'फिरदौसी' ने 'शाहनामा' की रचना की। जो गजनवी का दरबारी इतिहासकार था ।
Ø महमूद गजनवी ने 'बुतशिकन' मूर्तिभंजक की उपाधि ली।
Ø गजनवी को मुस्लिम विश्व का प्रथम वैद्यानिक सुल्तान माना जाता है। इसने अपने सिक्कों के पृष्ठ भाग पर कलिमा का संस्कृत अनुवाद अव्यमेक अवतारः अंकित करवाया।
Ø संस्कृत मुद्रालेख के साथ चांदी के सिक्के महमूद गजनवी ने अंकित किये। चांदी के एक सिक्के दिरहम का वनज 3.0 ग्राम था।
Ø 11वीं सदी में अलबरूनी, महमूद के आक्रमण के समय भारत आया था। इसने प्रसिद्ध पुस्तक किताबुल हिन्द की रचना की जो तत्कालीन इतिहास जानने का महत्वपूर्ण साधन है ।
Ø गजनवी आक्रमण के समय समकालीन भारतीय शासक
1. हिन्दूशाही राज्य के जयपाल ।
2. कश्मीर की रानी दिदा ।
3. कन्नौज के प्रतिहार वंश का शासक राज्यपाल ।
4. बंगाल में पाल वंश के शासक महिपाल ।
5. सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण के समय गुजरात में भीम प्रथम का शासन था ।
6. चंदेल शासक विद्याधर, गजनवी से पराजित नहीं हुआ।
महत्वपूर्ण तथ्य:
Ø गजनवी की सेना में तिलक नामक हिन्दू सेनापति नियुक्त हुआ था।
Ø भारत पर आक्रमण करने से पहले महमूद गजनवी ने बुतकिशन (मूर्तिभंजक) की उपाधि धारण की थी।
Ø तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वराज चौहान का सेनापति स्कन्द था।
Ø फिरदौसी, गजनी के दरबार में शाही कवि, बैहाकी शाही लेखक व उत्बी शाही इतिहासकार था।
Ø फिरदौसी, को पूर्व का होमर तथा बैहाकी को पूर्व का पेंटस कहा गया है।
गोरी वंश:
Ø 1030 ई. में महमूद की मृत्यु के बाद गजनी के एक उत्तराधिकारी बहराम शाह ने गोर शासक की बढ़ती शक्ति को दबाने के लिए गोर शासक अलाउद्दीन हुसैन शाह के दो
भाईयों को पकड़ कर उनकी हत्या करवा दी। प्रतिशोध में आलाउद्दीन हुसैन ने गजनी प्रदेश पर हमला कर दिया तथा गजनी में सात दिनों तक लूट-पाट मचाता रहा एवं उसे पूरी
तरह से जला दिया। इस कारण अलाउद्दीन हुसैन शाह को जहाँ-सोज विश्व दाहक की उपाधि प्राप्त हुई।
Ø इस अव्यवस्था की स्थिति में गजनी प्रदेश पर तुर्कमानों की गूंज शाखा का कब्जा हो गया। माना जाता है कि शंसवनी शाखा के गोर शासक ग्यासुद्दीन ने गुंजो को गजनी से
खदेड़ दिया और गजनी प्रदेश पर कब्जा कर लिया।
Ø 1163 ई. ग्यासुद्दीन मुहम्मद गोर को राजगद्दी प्राप्त हुई। तत्पश्चात् तुर्की जनजातीय परंपरा का पालन करते हुए उसने अपने भाई मुईज्जुद्दीन मुहम्मद गोरी को गजनी प्रदेश का शासक नियुक्त किया। मुईज्जुद्दीन को ही भारतीय इतिहास में मुहम्मद गोरी के नाम से जाना जाता है। मुहम्मद गोरी ने 1173 ई.-1206 ई. तक शासन किया ।
Ø मुहम्मद गोरी का प्रथम आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान पर हुआ। उस समय मुल्तान पर करमाथी जाति के मुसलमान शासक का शासन था ।
Ø 1178 ई. में गोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया। किन्तु मूलराज द्वितीय ने उसे आबू पर्तत की तलहटी में पराजित किया। भारत में यह मुहम्मद गोरी की पहली पराजय थी।
Ø 1186 ई. में गोरी ने छल से खुसरव को कैद कर पंजाब पर आक्रमण कर दिया |
Ø 1191 ई., तराइन के प्रथम युद्ध में, पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को परास्त किया किन्तु तराइन के द्वितीय युद्ध 1192 ई. में मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया।
Ø तराइन के युद्ध के पश्चात् भारत में तुर्की राज्य की स्थापना हुई। तथा 1193 ई. से दिल्ली अर्थात् भारत में गोरी की राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बना।
Ø तराइन का द्वितीय युद्ध निर्णायक लड़ाई इसलिए माना जाता है, क्योंकि उस समय चौहानों का राज्य उत्तरी भारत में तुर्कों की सत्ता की स्थापना को लगभग तय कर दिया।
Ø 1194 ई. में मुहम्मद गोरी ने कन्नौज के शासक जयचन्द पर आक्रमण किया तथा चन्दावर के युद्ध में जयचंद को पराजित किया।
Ø 1206 ई. में गोरी की मृत्यु के बाद ऐबक ने भारत में नये वंश की नींव डाली, जिसे गुलाम वंश कहा गया।
Ø मुहमम्द गोरी के सिक्कों पर एक ओर कलिमा ख़ुदा रहता था। तथा दूसरी ओर लक्ष्मी की आकृति अंकित रहती थी।
Ø भारत में मुहमम्द गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को प्रथम इक्ता प्रदान किया। गोरी ने 1191 ई. में हांसी में नियुक्त किया गया। मुहमम्द गोरी के दास बख्तियार खिलजी ने बंगाल व बिहार पर विजय प्राप्त किया। 1202 ई. तक बिहार की विजय की तथा नालंदा व विक्रमशिला को तहस नहस कर दिया । 1204-05 ई. में बंगाल पर आक्रमण किया।
Ø 1205 ई. में पंजाब और मुल्तान में खोक्खरों ने विद्रोह कर दिया। ऐबक इनके विद्रोह का दमन करने में असफल रहा। अतः 1205 ई. में मुहम्मद गोरी पुनः भारत आया और खोक्खरों को पराजित किया। यह भारत में गोरी की अंतिम विजय थीं।
Ø गोरी शंसबनी वंश का तुर्क था । इसका वास्तविक नाम शिहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी था।
Ø मुहमम्द गोरी के उपरांत उनके गुलाम (दास) द्वारा भारतीय प्रदेशो पर सल्तनत काल की नींव रखी गयी।
दिल्ली सल्तनत (1206 ई. - 1526 ई. तक )
Ø गोरी की मृत्यु के पश्चात उसका कोई वैधानिक उत्तराधिकारी नहीं था। उसका कहना था कि मेरे दास मेरे पुत्रों के समान है । जो मेरी मृत्यु के पश्चात् भी मेरे वैभव, मेरे सम्मान और। मेरी प्रतिष्ठा की रक्षा करेंगें।
Ø ऐबक भी गोरी का दास था। गोरी ने 1192 ई. में उसे भारतीय| प्रदेश का प्रशासक नियुक्त किया था। अतः भारतीय क्षेत्र का नियंत्रण उसे प्राप्त हो गया । यल्दोज नामक दास का नियंत्रण गजनी पर हो गया तथा कुबाचा उच्क्ष पर स्थापित हो गया । यल्दोज ने भारतीय प्रदेश पर भी अपना दावा प्रस्तुत किया ।
Ø इसके प्रश्चात् दिल्ली सल्तनत में क्रमश: 5 राजवंशों का शासन रहा
1. गुलाम वंश | 1206-1290 ई. तक |
2. खिलजी वंश | 1290-1320 ई. तक |
3. तुगलक वंश | 1320-1414 ई. तक |
4. सैय्यद वंश | 1414-1451 ई. तक |
5. लोदी वंश | 1451-1526 ई. तक |
गुलाम वंश (1206-1290 ई.)
Ø गुलाम वंश का संस्थापक कुतबुद्दीन ऐबक था। जोकि मुहम्मद गोरी का एक दास था । इसलिए कुछ विद्वान इसे दास्य गुलाम वंश या मामलूक वंश का नाम भी देते हैं ।
कुतबुद्दीन ऐबक (1206 - 1210 ई.)
Ø कुतबुद्दीन ऐबक को भारत में तुर्की राज्य का संस्थापक माना जाता है। वह दिल्ली का प्रथम तुर्की शासक था ।
Ø ऐबक की राजधानी लाहौर थी।
Ø ऐबक को दासता से मुक्ति 1208 ई. में मिली थी।
Ø ऐबक लाखों का दान दिया करता था तथा उसकी उदारता के लिए उसे 'लाखबख्श' कहा गया।
Ø प्रसिद्ध सूफी संत कुतबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर उसने दिल्ली में कुतुब मीनार की नींव रखी। जिसे इल्तुतमिश ने पूर करवाया ।
Ø 1210 ई. में चौगान खेलते हुए, घोड़े से अचानक गिरने की वजह से उसकी मृत्यु हो गई ।
Ø कुतबुद्दीन के बाद उसका उत्तराधिकारी उसका अनुभवहीन व अयोग्य पुत्र आरामशाह था किन्तु इल्तुतमिश ने उसे अपदस्थ करके सिंहासन पर अधिकार कर लिया।
Ø ऐबक ने साम्राज्य विस्तार से अधिक ध्यान उसके सुदृढ़ीकरण पर दिया।
इल्तुतमिश ( 1210 - 1236 ई.)
Ø कुतबुद्दीन ऐबक का दामाद व उत्तराधिकारी इल्तुतमिश इल्बरी तुर्क या शम्सी तुर्क था।
Ø इल्तुतमिश ही दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक था। कुतबुद्दीन ऐबक के की मृत्यु के समय यह बदायूँ का सूबेदार (गर्वनर) था।
Ø इल्तुतमिश ने सुल्तान के पद को वंशानुगत बनाया।
Ø मुहम्मद गोरी ने 1206 ई. में खोक्खरों के विद्राह के समय इल्तुतमिश को असाधारण योग्यता के कारण उसे दासता से मुक्त कर दिया था।
Ø इल्तुतमिश के समय अवध में पिर्थू का विद्रोह हुआ था।
Ø इसने तुर्कान - ए - चहलगानी या चालीसा (चालीस अमीरों का समूह) का गठन किया।
Ø इसने दिल्ली को राजधानी के रूप में स्थापित किया था।
Ø इल्तुतमिश ने ही भारत में सल्तनत काल में सर्वप्रथम शुद्ध अरबी सिक्के चलाए थे। ये सिक्के
1. चांदा का सिक्का - 'टंका' (175 ग्रेन)
2. तांबे का सिक्का 'जीतल'।
Ø इक्ता व्यवस्था का प्रयोग इल्तुतमिश ने सामांतवादी व्यवस्था को समाप्त करने के लिए व साम्राज्य के एकीकरण के उद्देश्य से किया था।
Ø इल्तुतमिश ने अपने उत्तराधिकार के रूप में ज्येष्ठ पुत्र का चयन करने की सामान्य प्रथा को तोड़ दिया, अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। किन्तु इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद तुर्की अमीरों ने अपने पुत्र रूकनुद्दीन को गद्दी पर बैठाया। वास्तविक सत्ता उसकी मां शाह तुर्कान के हाथों में रहा । उसे जन समूह द्वारा अपदस्थ कर रजिया को सुल्तान बनाया गया।
Ø इल्तुतमिश ने ग्वालियर विजय के उपलक्ष्य में रजिया के नाम का टंका जारी किया था।
Ø इल्तुतमिश के सिक्कों पर नंदी तथा अश्वारोही सेना जैसे चित्र अंकित थे।
रजिया सुल्तान (1236-1240 ई.)
Ø मध्य काल की प्रथम महिला शासिका रजिया सुल्तान थी।
Ø रजिया ने पर्दा प्रथा त्याग दिया और पुरूषों के समान कुबा (कोट) और कुलाह (टोपी) पहनकर दरबार में बैठती थी, तथा शासक का कार्य वह स्वयं सम्भालती थी।
Ø एतगीन को रजिया ने बदायूं का इक्तादार और फिर अमीर हाजिब का महत्वपूर्ण पद तथा अल्तूनियां को तबरहिन्द (भटिंडा) का इक्तादार नियुक्त किया।
Ø एक अबीसीनियाई हब्शी अफसर जलालुद्दीन याकूत को अमीर ए आखूर (अश्वशाला का प्रधान) नियुक्त किया।
Ø भटिंडा के गर्वनर मलिक अल्तूनिया के नेतृत्व में रजिया के विरूद्ध विद्रोह कर उसे सत्ता से हटाया था। रजिया को सत्ताच्युत करने में तुर्कों का हाथ था।
Ø एलफिस्टन के अनुसार- यदि रजिया स्त्री न होती तो उसका नाम भारत के महान मुस्लिम शासकों में लिया जाता।
मुइजुद्दीन बहरामशाह ( 1240 - 1242 ई.)
Ø इसने 'नायब - ए - मुमलकत' नामक नए पद का सृजन किया। सर्वप्रथम यह पद रजिया के विरूद्ध षड्यंत्र करने वाले एतगीन को प्रदान किया।
अलाउद्दीन महमूद शाह ( 1242 - 1246 ई.)
Ø इसके समय में समस्त शक्ति चालीस सदस्यों के पास चली गयी।
Ø बलबन अमीर - ए - हाजिब के पद पहुँच कर धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ाने लगा।
नासिरूद्दीन महमूद ( 1246 - 1265 ई.)
Ø कुरान की नकल करना इसकी आदत थी। यह मधुर एवं धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था ।
Ø मिनहाजुद्दीन सिराज ने अपनी तबकात - ए - नासिरी उसे ही समर्पित की। उसके शासनकाल में वह मुख्य काजी के पद पर था जो बाद में षड्यंत्र द्वारा उसी के शासनकाल में हराया गया।
Ø नासिरूद्दीन महमूद के शासन काल में समस्त शक्ति बलबन के हाथों में थी।
Ø 1265 ई. में नासिरूद्दीन महमूद की मृत्यु होने पर बलबन स्वयं को सुल्तान घोषित किया ।
बलबन (1265 - 1287 ई.)
Ø बलबन ने 20 वर्ष तक वजीर की हैसियत तथा 20 वर्ष तक सुल्तान के रूप में शासन किया।
Ø उसने सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए रक्त एवं लौह की नीति अपनाई।
Ø इसने सुल्तान को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि और उसका स्थान केवल पैगम्बर के पश्चात् है।
Ø नियामत-ए-खुदाई का सिद्धांत दिया।
Ø बलबन अपने को 'फिरदौसी के शाहनामा' में वर्णित अफरासियाब का वंशज तथा शासन को ईरानी आदर्श के रूप बताया हैं।
Ø बलबन ने ‘चालीसा दल' का दमन किया। तुर्कान - ए - चहलगानी' को समाप्त किया।
Ø बलबन की सफलता का श्रेय उसके गुप्तचर विभाग को दिया जाता है।
Ø बलबन ने सैन्य विभाग 'दीवाने अर्ज' की स्थापना की।
Ø उसने सिजदा और पाबोस की प्रथा को अपने दरबार में फिर से शुरू करवाया जो मूलतः ईरानी थी और जिन्हें गैर इस्लामी समझा जाता था। इसके अतिरिक्त उसने ईरानी त्योहार नौरोज प्रथा भी आरम्भ की।
Ø बलबन ने 'जिल्ले-इलाही' की उपाधि धारण की
Ø बलबन का पूरा नाम ग्यासुद्दीन बलबन था।
Ø बलबन ने मंगोलों के आक्रमण की रोकथाम करने के उद्देश्य से उत्तर पश्चिम सीमा को सुदृढ़ करवाया।
Ø बलबन ने गढ़मुक्तेश्वर के मस्जिद के दीवारों पर उत्कीर्ण शिलालेख पर स्वयं को 'खलीफा का सहायक' कहा है।
कैकुबाद (1287 -1290)
Ø बलबन के उपरांत बुगरा खां के पुत्र कैकुबाद शासक बना। यह एक अयोग्य शासक था।
Ø इसने यमुना नदी के किनारे किलोखरी (कैलागढ़ी) की स्थापना की और वहां रहने लगा।
Ø 1290 ई. में पक्षाघात से पीड़ित हो गया। इसी समय समाना के सूबेदार जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली गया और कैकुबाद के पुत्र कैमुअर्स को नियंत्रण में ले लिया और शासन किया। कुछ दिनों बाद उसकी हत्या करके स्वयं शासक बन गया।
Ø कैकुबाद को एक खिलजी सरदार ने चादर में लपेटकर यमुना नदी में फेंक दिया था।
Ø 1285 ई. मंगोलो के आक्रमण के समय अमीर खुसरों को मंगोलों ने बन्दी बना लिया था।
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