अचानक से कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में 2 से 3 मिनट के अंदर 5 से 6 फीट पानी भर गया, जिसके कारण तीन जवान छात्र जो IAS की तैयारी कर रहे थे, उनकी उसी पानी में डूब कर दर्दनाक मौत हो गई।
हम भारतीय हैं और हमें
गर्व भी है, क्योंकि कभी हमारी एक
ऐसी सभ्यता हुआ करती थी जिसमें पानी की निकासी बहुत ही बेहतरीन स्तर की थी,
जिसे हम सिन्धु सभ्यता के नाम से जानते हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो
जैसी प्राचीन शहरों में पानी की व्यवस्था देखकर आज भी दुनिया आश्चर्यचकित होती है।
लेकिन, आज के भारत में जब बारिश होती है, तो नालियों का पानी सड़कों पर भर जाता है, जो सबके
लिए एक बड़ी मुसीबत बन जाता है।
अभी चार दिन पहले, दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में
पढ़ रहे बच्चों के साथ जो घटना हुई, वह दिल को दहला देने
वाली थी। अचानक से कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में 2 से 3 मिनट के अंदर 5 से 6 फीट पानी
भर गया, जिसके कारण तीन जवान छात्र जो IAS की तैयारी कर रहे थे, उनकी उसी पानी में डूब कर
दर्दनाक मौत हो गई।
अब सवाल उठता है कि इसका
जिम्मेदार कौन है? सरकार या
फिर कोचिंग सेंटर के मालिक?
दिल्ली की गलियों और
सड़कों पर होने वाली जलभराव की समस्या कोई नई नहीं है। हर साल बारिश के मौसम में, सड़कों पर पानी भर जाना आम बात हो गई है।
नालियों की सफाई न होने के कारण, पानी का बहाव रुक जाता है
और यही पानी सड़कों पर फैल जाता है। यह समस्या केवल दिल्ली की नहीं है, बल्कि पूरे भारत की है।
लेकिन, जब यह समस्या एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट
तक पहुँच जाती है और निर्दोष छात्रों की जान ले लेती है, तो
यह एक गंभीर मुद्दा बन जाता है। कोचिंग सेंटर के मालिकों का यह कर्तव्य था कि वे
अपने सेंटर की सुरक्षा सुनिश्चित करें। बेसमेंट में पढ़ाई कराना तब ही सुरक्षित हो
सकता है जब वहां जलनिकासी की उचित व्यवस्था हो।
दूसरी ओर, सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे
जलभराव की समस्या को गंभीरता से लें और इसके समाधान के लिए ठोस कदम उठाएं। नालियों
की नियमित सफाई, जलनिकासी की बेहतर व्यवस्था, और आपातकालीन सेवाओं की तत्परता इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक है।
तीन छात्रों की मौत एक
त्रासदी है, जो हमें यह सोचने पर
मजबूर करती है कि हम अपने वर्तमान में कितनी लापरवाह हो गए हैं। यह घटना हमें यह
याद दिलाती है कि हमें अपनी प्राचीन सभ्यता से सीखने की जरूरत है, जहां पानी की निकासी की व्यवस्था इतनी प्रभावी थी कि बाढ़ का नामो-निशान
नहीं होता था।
यह कहानी केवल एक घटना
नहीं है, यह एक चेतावनी है कि हमें अपनी व्यवस्था
में सुधार करने की जरूरत है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे बच्चे सुरक्षित
माहौल में पढ़ाई कर सकें, और इसके लिए हमें अपनी
जिम्मेदारियों को समझना होगा और उन्हें निभाना होगा।
"सभ्यता से वर्तमान
तक: एक यात्रा" हमें यह बताती है कि हम अपने अतीत से कितना कुछ सीख सकते हैं
और अपने वर्तमान को कितना बेहतर बना सकते हैं। हमें अपने बच्चों के लिए एक
सुरक्षित और समृद्ध भविष्य का निर्माण करना है, और इसके लिए
हमें आज ही कदम उठाने होंगे।
**"सभ्यता से वर्तमान
तक: एक त्रासदी की गाथा"**
प्राचीन भारत की सिन्धु
घाटी सभ्यता का दौर था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे शहर अपने अद्वितीय नगर नियोजन
और जलनिकासी व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध थे। घरों में नालियों का जाल, कुशल जल प्रबंधन, और
स्वच्छता की उन्नत व्यवस्था आज भी हमें चकित करती है। उस समय की योजनाबद्ध
संरचनाएं हमारे आज के समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत होनी चाहिए थीं।
समय ने करवट बदली, और हमने प्रगति की राह पकड़ी। आधुनिक भारत
ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में कदम बढ़ाए, लेकिन जल प्रबंधन
जैसी बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी ने हमें फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया।
यह कहानी दिल्ली की है, जो प्राचीन सभ्यता की तरह किसी भी तरह से
योजनाबद्ध नहीं हो पाई। बारिश का मौसम आते ही यहां की सड़कों पर पानी भर जाना आम
बात हो गई थी। इस अनियोजित जल निकासी की सबसे बड़ी कीमत चुकाई एक कोचिंग सेंटर के
तीन मासूम छात्रों ने।
दिल्ली के इस कोचिंग सेंटर
के बेसमेंट में आईएएस की तैयारी करने वाले ये तीन छात्र अपने सपनों को साकार करने
के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे। वे अपने भविष्य को संवारने के लिए समर्पित थे, लेकिन उनकी मेहनत का अंत एक दर्दनाक हादसे
में हुआ। चार दिन पहले हुई इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
उस दिन सुबह से ही बारिश
हो रही थी। शहर की सड़कों पर पानी भरने लगा और जलभराव की समस्या विकराल रूप लेने
लगी। कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में क्लास चल रही थी,
और अचानक पानी का बहाव तेजी से अंदर की ओर बढ़ने लगा। देखते ही
देखते 2 से 3 मिनट के अंदर बेसमेंट में 5 से 6 फीट पानी भर गया। बच्चों को बचाने
का कोई रास्ता नहीं था। तीनों छात्र पानी में डूब गए और उनकी दर्दनाक मौत हो गई।
यह त्रासदी केवल एक हादसा
नहीं थी, यह हमारे समाज की लापरवाही और अव्यवस्था का
प्रतीक थी। यह सवाल उठना लाजमी था कि इसका जिम्मेदार कौन है? सरकार, जिसने जलनिकासी की व्यवस्था को नजरअंदाज किया,
या कोचिंग सेंटर के मालिक, जिन्होंने बेसमेंट
की सुरक्षा की अनदेखी की?
सरकार की जिम्मेदारी है कि
वह जलनिकासी की उचित व्यवस्था करे। नालियों की नियमित सफाई, बाढ़ प्रबंधन योजना, और
आपातकालीन सेवाओं की तत्परता सुनिश्चित होनी चाहिए। इसके साथ ही, कोचिंग सेंटर के मालिकों का यह कर्तव्य है कि वे अपने संस्थानों की
सुरक्षा सुनिश्चित करें, खासकर जब छात्रों की जान का सवाल
हो।
तीन छात्रों की मौत ने
हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमें अपनी व्यवस्था में सुधार करने की कितनी
जरूरत है। यह घटना हमें हमारी प्राचीन सभ्यता से सीख लेने की याद दिलाती है, जहां जल निकासी की प्रभावी व्यवस्था ने
बाढ़ को कभी भी बड़ी समस्या नहीं बनने दिया।
"सभ्यता से वर्तमान
तक: एक त्रासदी की गाथा" हमें यह बताती है कि हमने प्राचीन काल से कितनी दूर
आ गए हैं, लेकिन हम अपने वर्तमान में कितने लापरवाह
हो गए हैं। हमें अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा और उन्हें निभाना होगा। हमें यह
सुनिश्चित करना होगा कि हमारे बच्चे सुरक्षित माहौल में पढ़ाई कर सकें, और इसके लिए हमें आज ही कदम उठाने होंगे।
इस त्रासदी की कहानी हमें
यह सिखाती है कि हमें अपनी पुरानी सभ्यता से प्रेरणा लेकर अपने वर्तमान और भविष्य
को संवारना है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि हमारे बच्चे सुरक्षित रहें और उनके
सपने कभी अधूरे न रह जाएं।
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